बैंक ऑफ बड़ौदा मैनेजर सुसाइड केस: यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट से लगाई न्याय की गुहार

17 जुलाई 2025 को बैंक ऑफ बड़ौदा, बारामती शाखा के चीफ मैनेजर श्री शिवशंकर मित्रा की आत्महत्या ने पूरे बैंकिंग सेक्टर को झकझोर कर रख दिया है। अब इस मामले को लेकर ऑल इंडिया बैंक ऑफ बड़ौदा ऑफिसर्स यूनियन (AIBOBOU) ने सीधे सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की है।


सुप्रीम कोर्ट को भेजा गया पत्र

19 जुलाई 2025 को यूनियन ने एक औपचारिक पत्र माननीय मुख्य न्यायाधीश (CJI) को लिखा, जिसमें उन्होंने इस घटना को सिर्फ व्यक्तिगत समस्या नहीं बल्कि संस्थागत विफलता (Institutional Failure) बताया। पत्र में कहा गया है कि यह आत्महत्या, बैंक के अंदर के मानसिक दबाव, अपमानजनक व्यवहार और असंभव टारगेट्स का नतीजा है।


क्या हुआ था उस दिन?

यूनियन के अनुसार, 17 जुलाई को श्री मित्रा का शव शाखा परिसर में पाया गया। उनके पास से एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें उन्होंने लिखा कि वह अत्यधिक कार्य दबाव (Unbearable Work Pressure) की वजह से यह कदम उठा रहे हैं।


बैंक में ज़हरीली कार्यसंस्कृति?

यूनियन ने पत्र में यह भी लिखा है कि बैंक ऑफ बड़ौदा, जो कभी सार्वजनिक सेवा का प्रतीक था, अब धीरे-धीरे एक निजी क्षेत्र की तरह शोषणकारी संस्था बनता जा रहा है। उन्होंने कई परेशान करने वाले आरोप लगाए:

  • देर रात तक वीडियो कॉल और अपमानजनक भाषा
  • कम स्टाफ के साथ असंभव टारगेट
  • ट्रांसफर की धमकी और मानसिक दबाव
  • भय और तनाव से भरा कार्य वातावरण

इसे यूनियन ने सिस्टमेटिक साइकोलॉजिकल टॉर्चर” यानी व्यवस्थित मानसिक प्रताड़ना बताया।


'नेशनलाइजेशन डे' के दिन दुखद घटना

यूनियन ने यह भी कहा कि यह घटना उस समय हुई जब देश में बैंक नेशनलाइजेशन डे मनाया जा रहा था – एक ऐसा दिन जो यह याद दिलाता है कि पब्लिक सेक्टर बैंकों को जनहित में काम करना चाहिए, न कि कर्मचारियों को कॉर्पोरेट स्टाइल में शोषण करके।


कानूनी और नैतिक ज़िम्मेदारी

AIBOBOU ने इसे भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 108 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का स्पष्ट मामला बताया है। उन्होंने इसे “Institutional Murder” यानी संस्थागत हत्या तक कहा है, और सुप्रीम कोर्ट से सख्त कार्रवाई की मांग की है।


यूनियन की प्रमुख माँगें

1.      सुप्रीम कोर्ट इस मामले का स्वतः संज्ञान ले

2.      स्वतंत्र और न्यायिक जांच कराई जाए

3.      दोषियों पर BNS की धारा 108 के तहत मुकदमा दर्ज हो

4.      मानसिक उत्पीड़न रोकने के लिए स्पष्ट गाइडलाइन्स बनाई जाए

5.      मृतक अधिकारी के परिवार को आर्थिक और नौकरी से जुड़ी सहायता दी जाए


क्या अब बदलाव की जरूरत है?

इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं —
क्या सरकारी बैंकों में काम का दबाव लगातार बढ़ रहा है?
क्या अब समय आ गया है कि हम बैंकिंग सेक्टर की कार्यसंस्कृति पर गंभीरता से विचार करें?


💬 आपकी राय क्या है?
क्या आपको लगता है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सख्त रुख अपनाएगा?
क्या दोषी अधिकारियों को सज़ा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे हादसे न हों?

👇 नीचे कमेंट करके ज़रूर बताएं।




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